के करत मिथिलाक्षरक रक्षा!!
किछु दिन पूर्व एकटा ग्रन्थ पढने रही। ग्रन्थ केर नाम छल ’भुवमानीता भगवद्भाषा’। ई ग्रन्थ संस्कृत में अछि आओर एहि ग्रन्थक उद्देश्य मानव मात्र में एहि विचार कें आनव अछि जे सदिखनि प्रयत्न कय अपन संस्कृति कें रक्षण करब संभव होइत छैक। एहि ग्रन्थ में यहूदी संस्कृति केर विवरण दैत एहि तथ्य के स्प्ष्ट कयल गेल अछि। एहि ठाम सहज रूपे ई प्रश्न उठत जे प्रकृत निबन्धलेखनक क्रम में संस्कृतिक चर्चा तर्कसंगत अछि वा नहि? अवश्य तर्कसंगत अछि कियाक तऽ कोनो संस्कृति केर रक्षा केर प्रथम चरण होइत अछि ओकर भाषा आओर लिपिक संरक्षण। यदि ई गप्प मिथिलाक परिप्रेक्ष्य में करी तऽ आओर स्पष्ट होयत| मैथिली बाषा तऽ निरन्तर उत्कर्ष दिस अछि मुदा ओतहि यदि एकर लिपि केर चर्चा करी तऽ देखैत छी जे ई सदिखनि उपेक्षिते भय रहल अछि। किछु वर्ष पूर्वतक ई परिपाटी छल जे पत्राचार मिथिलाक्षर (तिरहुता) में हो आ एहि कारण ई प्रचलन में छल मुदा आब तऽ ई कदाचित विलुप्त नहिं भय जाय ई आशंका केनाय कोनो अनुचित नहि।
एहि सम्बन्ध में विशेष ध्यान देवाक आवश्यकता अछि जे पुनर्जागरण हो आ सभ मैथिल मिथिलाक्षर सँ कम सऽ कम परिचित अवश्य होई। कियाक तऽ आजुक स्थिति एहेन भय गेल जे अधिकांश मैतिल तऽ मिथिला कें अपन लिपि सेहो छैक अहू सं अपरिचित छथि एहेन स्थिति में मिथिलाक्षर केर संरक्षण कतेक कठिन अछि सहजतया बुझल जा सकैत अछि।
एहि सन्दर्भ में श्री गजेन्द्र ठाकुर केर प्रयास सराहनीय छन्हि जे Learn International Phonetica Alphabet through Mithilakshara. नामक ग्रन्थ लिखि एहि दिस लोक केर ध्यन आक्र्षित कराओलथि। यद्यपि ई ग्रन्थ सीमित जानकारी प्रस्तुत करैत अछि मुदा प्रारम्भिकदृष्ट्या उत्तम अछि। ई ग्रन्थ Online pdf फार्मेट में सेहो उपलब्ध अछि।
पुनश्च ई निवेदन जे एहि ग्रन्थक विस्तृत रूप में परिवर्द्धन हो आ व्यवहार में मिथिला क आखर समस्त मैथिल केर हृदय में पुनः विराजमान हो एकर समुचित प्रयास कयल जाय।
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बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग । आपका मैथिली भाषा का ज्ञान उच्च कोटि का प्रतीत होता है । परन्तु यूनिकोड देवनागरी में सीधे क्यों नहीं टाइप करते ? यदि ऐसा करें तो आकर्षित के स्थान पर आक्र्षित जैसे विचित्र शब्द पैदा नहीं होंगे । इति शुभम् ।
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