मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

स्वातन्त्रोत्तरयुगीन संस्कृत साहित्यक संवर्द्धन मे मिथिलाक भूमिका।

स्वातन्त्रोत्तरयुगीन संस्कृत साहित्यक संवर्द्धन मे मिथिलाक भूमिका।

भक्तत्राण परायणा भवभयाभावं समातन्वती, या देवीह सुदर्शनं नृपमणिं संरक्ष्य युद्दे खरे।
या चास्मै समुदात् स्वराज्यमखिलं स्वीयं हृतं शत्रुभिः, पायात् सा भुवनेश्वरी भगवती मां सर्वदा शर्मदा।
भारतीय ज्ञान परंपरा विचारक, ग्रन्थक आओर चिन्तकक निरन्तर अविच्छिन्न प्रवाहमयी धारा अछि जे दर्शन, साहित्य, तर्क, विज्ञान, धर्मशास्त्र आओर अन्यान्य ज्ञान-विधा से निर्मित होइत रहल अछि। एहि ज्ञान परंपरा कऽ समुन्नयन मे संस्कृत साहित्य आओर मैथिली साहित्य कऽ योगदान नितान्त महनीय अछि।
एहि लेख मे संस्कृत साहित्यक संवर्द्धन मऽ मिथिलाक की भूमिका रहल अछि एकर दिग्दर्शन करबाक प्रयास कयल जा रहल अछि। तहू मे मूलतः स्वातंत्रोत्तर युगीन संस्कृत साहित्यक संवर्द्धन मऽ मिथिलाक की भूमिका रहल अछि एकर विश्लेषण कयल जा रहल अछि। वस्तुतः एकटा लेखक माध्यम सँ सम्पूर्ण तथ्यक प्राकाशन सर्वथा कठिन अछि, अस्तु प्रतिनिधि अंश द्वारा कथनक पुष्टि करवाक प्रयास रहत। संस्कृतक की स्थिति छल प्राचीन मिथिला म ई त्ऽ एकटा उद्धरण सँ स्पषट भय जाइत अछि-
जगद्ध्रुवं स्याजगध्रुवं वा, कीडांगना यत्र गिरोगिरन्ति।
द्वारस्थ नीडाग्ङ्गसन्निरुद्ध, यानीहि तं मण्डन मिश्र धाम॥
संस्कृत साहित्यक समुन्नयन मे प्राचीन काल सँ मिथिला कऽ सहस्रशः मनीषि समर्पित रहल छथि । एहि मे- व्याकरणक क्षेत्र मे वार्त्तिककार वरुरुचि, भाषाविद् आओर साक्षात शेषावतार भगवान पतंजलि, दर्शनक क्षेत्र मे गौतम, कपिल, वाचस्पति मिश्र, ईश्वरक अस्तित्त्वप्रतिष्ठापक रूप मे प्रथित उदयनाचार्य, नव्यन्यायक प्रतिष्ठापक गंगेश उपाध्याय, उद्योतकर, पक्षधर मिश्र, अद्वैत वेदान्ती मण्डन मिश्र, विदुषी गार्गी, मैत्रेयी, भारती, धर्मशास्त्रक क्षेत्र मे लक्ष्मीधर, श्रीकर, हलायुध, भवदेव, श्रीधर, अनिरुद्ध, हरिहर, चन्द्रशेखर प्रभृति विसेश रूप सँ प्रथित छथि। काव्यक क्षेत्र मे विद्यापति जयदेव, मुरारि, भानुदत्त, शकर महनीय छथि।
अन्य विद्वान में महावैयाकरण पं० दीनबन्धु झा, पं० श्यामसुन्दर झा, पं० देवानन्द् झा, पं० तुलानन्द झा, पं०बुद्धिनाथ झा, पं०राधाकान्त झा, पं०वामदेव झा, पं० कामेश्वर झा, पं० वी० एन० झा, पं० शशिनाथ झा प्रभृति केँ नाम लेल जा सकैत अछि।
स्वातन्त्रोत्तर युग मे अनेकशः कवि अपन कृतिक माध्यम स्ँ संस्कृत साहित्य सुषमाक संवर्द्धन कयलथि। कतिपय कवि आओर हुनक कृति द्रष्टव्य अछि-
महाकाव्य :-
• पं० भवानीदत्त शर्मा सुरथचरितम्
• पं० रामचन्द्रमिश्र वैदेहीचरितम्
• पं० पशुपति झा नेपालसाम्राज्योदयम्
• पं० मतिनाथ मिश्र भार्गवविक्रमम्
• पं० कृपाकान्त ठाकुर आंजनेयचरितम्
• पं० रामकुमार सर्मा भरतचरितम्
खण्डकाव्य :-
• पं० जीवनाथ झा महेन्द्रप्रतापोदयम्
• पं० श्यामसुन्दर झा राजलक्ष्मीचरितम्
• पं० विष्णुकान्त झा राजेन्द्रवंशप्रशस्ति
• पं० रामचन्द्र मिश्र याज्ञासेनी
• पं० काशीनाथ मिश्र स्मरदहनमंजरी
• पं० रामजी ठाकुर वैदेहीपदांकनम्
• पं० हरिकान्त झा जम्मूकाश्मीरसुषमारत्नम्
अन्य प्रमुख काव्य:-
• पं० कविशेखर बद्रीनाथ झा काव्यकल्लोलिनी
• पं० आनन्द झा आनन्दमधुमन्दाकिनी
दृश्यकाव्य:-
• पं० तेजनाथ झा अयाचीनाटक
• पं० अच्युतानन्द झा विज्ञानमहिमा
• डा० नोदनाथ मिश्र मधुमालती
उक्त विवरण एकटा झलकमात्र अछि वस्तुतः तऽ एहि तरहें असंख्य रचना भेल अछि। अही संग संग ई कहब जरूरी अछि जे बहुतो विद्वान एहनो छलाह जे संस्कृत सं मैथिली पद्यानुवाद कय संस्कृतक संग संग मैथिली साहित्य कें समृद्द करबाक प्रयास मे आजीवन लागल रहला। अहे तरहक एकटा उदाहरण प्रस्तुत अछि पं० तुलानन्द झा कृत दुर्गासप्तशती चतुर्थ अध्यायक १ टा पद्या।
इन्द्रादि देव सभ मिलि करैछ हर्षें, रोमांच सुन्दर शरीर नुतो स्ववाक्यें।
दुर्गा प्रणाम-रत मस्तक नींक भावें, देवी कऽ मारल महिषासुर नाश भेनें॥
देवी जनीक सुबलें सभ व्याप्त विश्वे, सम्पूर्ण देवबल संघक कैल देहे।
अम्बा थिकीह सब देव महर्षि पूज्ये, प्रेमे नमी, सुभद ओ हमरा सभैकेँ
एवं प्रकारेण कहल जा सकैत अछि जे मिथिला सर्वथा सारस्वत साधना मे लीन रहैत संस्कृतक साहित्य सम्वर्द्धन में सतत योगदान दैत रहल अछि।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें