मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

ये बान्धवाऽबान्धवा वा।

दियाबाती दीपक पर्व थीक। बहुतो व्यक्ति एहेन हेतथि जे अपन गाम सँ दूर नगर आ महानगर मे आबि अपन कार्य मे व्यस्त भय गाम-घरक दियाबाती कऽ संवेदनात्मक स्मृतिमात्र अपन मन मे संयोजित राखि सन्तोष कयलैत हेतथि। आखिर गाम क दियाबाती आ एहि महानगर कऽ दिवाली मे अन्तर की छैक जेकर भेदक अनुभूति होइत छैक? महानगर मे तऽ चहू दिस बिजली क सजावट आ पटाखा आदि उपलब्ध रहैत अछि जे सहजता सँ गाम मे अखनो धरि उपलब्ध भेनाइ कदाचित कठिने अछि। ताहू मे मूलतः बिजली कऽ सहजता सँ पर्याप्त उपलब्धता नहि भेलाक कारण गाम आ महानगरक तुलने करब अनुचित होयत। मुदा तइयो महानगरीय दिवाली क चमकदार उल्लास सँ अधिक आनन्द ओ मधिम इजोत बला गामक दियाबातीक स्मृति दैत अछि।

यदि एकर कारण देखल जाय तऽ देखैत छी जे एक तऽ महानगरक यान्त्रिक जीवन एहि उल्लास कें न्यून कय दैत अछि आ दोसर मानवीयताक ह्रास अ ओ औपचारिकताक आधिक्य संवेदनात्मक अनुभूति करेवा मे असमर्थ सिद्ध होइत अछि। किन्तु आशय ई नहि जे ई समस्या गामक परिदृश्य मे सर्वथा नहि अछि वा महानगरीय जीवन सर्वथा त्याज्य अछि। कहबाक आशय मात्र एतेक अछि जे सापेक्ष दृष्टि सँ गाम तीव्रगति सँ बदलैत एहि समयचक्र मे संवेदनात्मक पक्ष कें रक्षा करवा मे अखनहुं समर्थ अछि।

हम गामक दियाबाती आइयो ओहिना याद करैत छी। लक्ष्मी पूजा कऽ बाद ऊक प्रज्ज्वलन होइत छलैक। सामान्यतया ओहि राति कालीपूजनोत्सव सेहो होइत छैक अस्तु ओकरो आनन्द लैत छलहुं।

ऊक प्रज्ज्वलन आदि न केवल परंपराक निर्वहण मात्र होइत छैक अपितु पारिवारिक सदस्यक मध्य हार्दिक सामीपता क कारण सेहो होइत छैक। दीप विशॆष रूप सँ कीटनाशक रूप मे प्रथित अछि। पटाखा आदिक आधिक्य तऽ गामो मे बढि रहल छैक मुदा अखनहुं सीमिते कहल जाय।

हम गामक एकटा घटना कऽ स्मरण कय विशेष रूप सँ गामक दिवाली स्मरण करैत छी। घटना करीबन १३ साल पहिलका अछि। १ टा महिला अपन सभ सन्तानक निमित्त दीप दय रहल छलथि। १टा बच्चा पुछलकैन – काकी अहां ई दीप दियाबाती दिन अलग से किया दैत छियैक…….? महिला भावुक भय कहलथि- अपन बच्चा सभ लऽ। ओ बच्चा फेर बाजल- अहां के तऽ…आ ई चारिम केकरा लऽ? ओ और भावुक भय गेली किन्तु बच्चा के किछु नहिं कहलखिन। हम ओहि समय अपन काज सँ हुनका लग गेल रही। बच्चा क ओ अनुत्तरित प्रश्न हमरा जिज्ञासित करय लागल। किछु दिन बाद हम हुनका सँ एकर चर्चा केलियन्हि। ओ कहलथि- अपन बौआ कऽ लेल (हुनकर आठ बर्खक बेटा मरि गेल छलन्हि )। हम एहि सँ पहिने अनेको बेर अपन बाबा कऽ मुँह सँ तर्पण काल मे ई सुनने रही- ये बान्धवाऽबान्धवा वा….। अर्थात जे कोनो पितर एहेन होथि जिनका कोई जल देन्हार नहि छथीन्ह हुनको तृप्ति होन्हि, एहि निमित्त हम ई जल दय रहल छी।

कहबाक भाव मात्र एतेक अछि जे गामक प्रत्येक परंपरा चाहे ओ दिवाली पर्व हो वा अन्य, मानव के स्नेहबन्ध मे रखबाक, आ पारस्परिक सौहार्द्रता एवं कर्तव्यबोध निमित्त होइत अछि। एहि के प्रत्युत महानगरीय परंपरा ’सेलिब्रेट’ करबाक बहाना मात्र दैत अछि। ओ महिला बहुत नीक जकां बुझैत हेथीन्ह जे ओ बेटा संग हुनक संबन्ध सर्वदा क लेल टुटि गेल छन्हि मुदा तखनो ओकर प्रसन्नता क कामना हेतु दिबारी जरबैत छलखीन्ह। संगहि ई आठ बर्ख धरि ओकरा द्वारा देल गेल स्नेह आ सम्मानक निमित्त हुनक कृतज्ञताक परिचायक छलन्हि।

अस्तु ओ महिला क दीप देनाइ सम्वेदनात्मक स्मृतिक रक्षा सँ संदर्भित छल। तीव्र गति सं बदलैत एहि युग मे हम सब एहि संवेदनात्मक पक्ष कें रक्षा नहि कय पाबि रहल छी। यदि जीवन सँ संवेदात्मक पक्ष के निकालि देल जाइ तऽ वस्तुतः मनुष्यक जीवन शून्यक पर्याय बनि जायत। एहि निमित्त आवश्यक अछि जे एहि चकाचौन्ध कें संग ओ धूमिल टिम्टिमाइत दियाबाती दिन जरै बला दिबारी कऽ बाती नहिं खत्म हो, एकर सदिखन रक्षा कयल जाइ।



विदेह में प्रकाशित http://www.videha.co.in/new_page_18.htm

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