मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

ये बान्धवाऽबान्धवा वा।

दियाबाती दीपक पर्व थीक। बहुतो व्यक्ति एहेन हेतथि जे अपन गाम सँ दूर नगर आ महानगर मे आबि अपन कार्य मे व्यस्त भय गाम-घरक दियाबाती कऽ संवेदनात्मक स्मृतिमात्र अपन मन मे संयोजित राखि सन्तोष कयलैत हेतथि। आखिर गाम क दियाबाती आ एहि महानगर कऽ दिवाली मे अन्तर की छैक जेकर भेदक अनुभूति होइत छैक? महानगर मे तऽ चहू दिस बिजली क सजावट आ पटाखा आदि उपलब्ध रहैत अछि जे सहजता सँ गाम मे अखनो धरि उपलब्ध भेनाइ कदाचित कठिने अछि। ताहू मे मूलतः बिजली कऽ सहजता सँ पर्याप्त उपलब्धता नहि भेलाक कारण गाम आ महानगरक तुलने करब अनुचित होयत। मुदा तइयो महानगरीय दिवाली क चमकदार उल्लास सँ अधिक आनन्द ओ मधिम इजोत बला गामक दियाबातीक स्मृति दैत अछि।

यदि एकर कारण देखल जाय तऽ देखैत छी जे एक तऽ महानगरक यान्त्रिक जीवन एहि उल्लास कें न्यून कय दैत अछि आ दोसर मानवीयताक ह्रास अ ओ औपचारिकताक आधिक्य संवेदनात्मक अनुभूति करेवा मे असमर्थ सिद्ध होइत अछि। किन्तु आशय ई नहि जे ई समस्या गामक परिदृश्य मे सर्वथा नहि अछि वा महानगरीय जीवन सर्वथा त्याज्य अछि। कहबाक आशय मात्र एतेक अछि जे सापेक्ष दृष्टि सँ गाम तीव्रगति सँ बदलैत एहि समयचक्र मे संवेदनात्मक पक्ष कें रक्षा करवा मे अखनहुं समर्थ अछि।

हम गामक दियाबाती आइयो ओहिना याद करैत छी। लक्ष्मी पूजा कऽ बाद ऊक प्रज्ज्वलन होइत छलैक। सामान्यतया ओहि राति कालीपूजनोत्सव सेहो होइत छैक अस्तु ओकरो आनन्द लैत छलहुं।

ऊक प्रज्ज्वलन आदि न केवल परंपराक निर्वहण मात्र होइत छैक अपितु पारिवारिक सदस्यक मध्य हार्दिक सामीपता क कारण सेहो होइत छैक। दीप विशॆष रूप सँ कीटनाशक रूप मे प्रथित अछि। पटाखा आदिक आधिक्य तऽ गामो मे बढि रहल छैक मुदा अखनहुं सीमिते कहल जाय।

हम गामक एकटा घटना कऽ स्मरण कय विशेष रूप सँ गामक दिवाली स्मरण करैत छी। घटना करीबन १३ साल पहिलका अछि। १ टा महिला अपन सभ सन्तानक निमित्त दीप दय रहल छलथि। १टा बच्चा पुछलकैन – काकी अहां ई दीप दियाबाती दिन अलग से किया दैत छियैक…….? महिला भावुक भय कहलथि- अपन बच्चा सभ लऽ। ओ बच्चा फेर बाजल- अहां के तऽ…आ ई चारिम केकरा लऽ? ओ और भावुक भय गेली किन्तु बच्चा के किछु नहिं कहलखिन। हम ओहि समय अपन काज सँ हुनका लग गेल रही। बच्चा क ओ अनुत्तरित प्रश्न हमरा जिज्ञासित करय लागल। किछु दिन बाद हम हुनका सँ एकर चर्चा केलियन्हि। ओ कहलथि- अपन बौआ कऽ लेल (हुनकर आठ बर्खक बेटा मरि गेल छलन्हि )। हम एहि सँ पहिने अनेको बेर अपन बाबा कऽ मुँह सँ तर्पण काल मे ई सुनने रही- ये बान्धवाऽबान्धवा वा….। अर्थात जे कोनो पितर एहेन होथि जिनका कोई जल देन्हार नहि छथीन्ह हुनको तृप्ति होन्हि, एहि निमित्त हम ई जल दय रहल छी।

कहबाक भाव मात्र एतेक अछि जे गामक प्रत्येक परंपरा चाहे ओ दिवाली पर्व हो वा अन्य, मानव के स्नेहबन्ध मे रखबाक, आ पारस्परिक सौहार्द्रता एवं कर्तव्यबोध निमित्त होइत अछि। एहि के प्रत्युत महानगरीय परंपरा ’सेलिब्रेट’ करबाक बहाना मात्र दैत अछि। ओ महिला बहुत नीक जकां बुझैत हेथीन्ह जे ओ बेटा संग हुनक संबन्ध सर्वदा क लेल टुटि गेल छन्हि मुदा तखनो ओकर प्रसन्नता क कामना हेतु दिबारी जरबैत छलखीन्ह। संगहि ई आठ बर्ख धरि ओकरा द्वारा देल गेल स्नेह आ सम्मानक निमित्त हुनक कृतज्ञताक परिचायक छलन्हि।

अस्तु ओ महिला क दीप देनाइ सम्वेदनात्मक स्मृतिक रक्षा सँ संदर्भित छल। तीव्र गति सं बदलैत एहि युग मे हम सब एहि संवेदनात्मक पक्ष कें रक्षा नहि कय पाबि रहल छी। यदि जीवन सँ संवेदात्मक पक्ष के निकालि देल जाइ तऽ वस्तुतः मनुष्यक जीवन शून्यक पर्याय बनि जायत। एहि निमित्त आवश्यक अछि जे एहि चकाचौन्ध कें संग ओ धूमिल टिम्टिमाइत दियाबाती दिन जरै बला दिबारी कऽ बाती नहिं खत्म हो, एकर सदिखन रक्षा कयल जाइ।



विदेह में प्रकाशित http://www.videha.co.in/new_page_18.htm

जनमानस हेतु प्रत्यभिज्ञादर्शनक वैशिष्ट्य

जनमानस हेतु प्रत्यभिज्ञादर्शनक वैशिष्ट्य

जा धरि भारतीय ज्ञान परम्पराक चर्चा नहि कयल जाइत अछि ता धरि ’ज्ञान’ पदक विवरण सम्पूर्ण नहिं होइत अछि। पुनश्च यदि भारतीय ज्ञानपरम्पराक चर्चा करी तऽ काश्मीर शैवदर्शनक चर्चाक बिना ई अधूरा रहत। तेरहम शताब्दीक बाद एकर परिगणना विद्वान सभ भारतीय दर्शन के अन्तर्गत केनाई बन्द कय देलथि कियाक तऽ सभक दृष्टि संकुचित भय मात्र छ टा दर्शन के आस्तीक आ तीन टा दर्शन के नास्तीक के रूप में प्रतिष्ठित करवा में व्यस्त भय गेलन्हि। वस्तुतः काश्मीर शैवदर्शन (एकरे अपरनाम प्रत्यभिज्ञादर्शन अछि) कऽ परम्परा एतेक समृद्ध अछि जे अभिनवगुप्त पाणिनि सदृश विद्वान के प्रतिष्ठित कयलक अछि।
काश्मीर शैवदर्शनक विकास आठम सदी सँऽ बारहम सदी केर मध्य भेल। ई दर्श पूर्णतः व्यावहारिक पक्षपर बल दैत रहल अछि। एहि दर्शन में मूल तत्त्व के रूप में परमशिव कें स्वीकार कयल गेल अछि। सम्पूर्ण चराचरजगत शिवरूप अछि ई एहि दर्शनक मूल धारणा छैक। कुल ३२ तत्त्व के स्वीकृत भेटल अछि-
• शिव
• शक्ति
• सद्विद्या
• ईश्वर
• माया कला, विद्या, राग, काल, नियति
• पुरुष
• प्रकृति  ( पंच तन्मात्रा, पंच ज्ञानेन्द्रिय, पंच कर्मेन्द्रिय, मन, पंच महाभूत)
एहिठाम प्रश्न उठनाई स्वाभाविक छैक जे सम्पूर्ण चराचर जगत शिवरूप केना भय सकैत छैक जखनि कि व्यवहार में पार्थक्य स्पष्टतः दृष्टिगत होइत अछि। एकर समाधान एहि दर्शनक तत्त्वमीमांसा करैत अछि जे ई स्पष्ट करैत अछि जे जतेक मात्रा में वस्तु वा व्यक्ति मलाच्छादित होइछ तावत मात्रा में ओ न्यूनरूप में प्रकाशित होइछ। एहि क्रमक विवेचन हेतु विशद रूप सँ प्रकाश-विमर्श आ आणव कार्म तथा मायीय मल केर चर्चा कयल गेल अछि जे एहि दर्शनक अनुपम ग्रन्थ ’श्रीतन्त्रालोक’ में सुलभ अछि।
एतय पुनः प्रश्न अछि जे जन सामान्य हेतु एहि दर्शनक की उपादेयता? एहि प्रश्नक समाधान करैत ई दर्शन कहैत अछि जे सर्वप्रथम तऽ आत्मविश्वास राखी जे हम स्वयं ओ परम सत्ता छी हमरा सँ कोनो कार्य असम्भव नहिं। अस्तु निराशा क कतहु स्थान नहि। अही संग दोसर संदेश ई छैक जे विभिन्न मल के दूर करवाक यत्न करी जाहि सँ शिवोऽहं केर भाव आवि सकय।
अस्तु एहि तरहें ई कहल जा सकैत अछि जे ई दर्शन अपन दार्शनिक मर्यादा रखितो जनमानस केर व्यावहारिक समस्या दिस विशेष ध्यान दैत अछि।

बिपिन कुमार झा
Cell for Indian Science and Technology in Sanskrit,
HSS, IIT, Bombay
http://sites.google.com/site/bipinsnjha/home

के करत मिथिलाक्षरक रक्षा!!

के करत मिथिलाक्षरक रक्षा!!
किछु दिन पूर्व एकटा ग्रन्थ पढने रही। ग्रन्थ केर नाम छल ’भुवमानीता भगवद्भाषा’। ई ग्रन्थ संस्कृत में अछि आओर एहि ग्रन्थक उद्देश्य मानव मात्र में एहि विचार कें आनव अछि जे सदिखनि प्रयत्न कय अपन संस्कृति कें रक्षण करब संभव होइत छैक। एहि ग्रन्थ में यहूदी संस्कृति केर विवरण दैत एहि तथ्य के स्प्ष्ट कयल गेल अछि। एहि ठाम सहज रूपे ई प्रश्न उठत जे प्रकृत निबन्धलेखनक क्रम में संस्कृतिक चर्चा तर्कसंगत अछि वा नहि? अवश्य तर्कसंगत अछि कियाक तऽ कोनो संस्कृति केर रक्षा केर प्रथम चरण होइत अछि ओकर भाषा आओर लिपिक संरक्षण। यदि ई गप्प मिथिलाक परिप्रेक्ष्य में करी तऽ आओर स्पष्ट होयत| मैथिली बाषा तऽ निरन्तर उत्कर्ष दिस अछि मुदा ओतहि यदि एकर लिपि केर चर्चा करी तऽ देखैत छी जे ई सदिखनि उपेक्षिते भय रहल अछि। किछु वर्ष पूर्वतक ई परिपाटी छल जे पत्राचार मिथिलाक्षर (तिरहुता) में हो आ एहि कारण ई प्रचलन में छल मुदा आब तऽ ई कदाचित विलुप्त नहिं भय जाय ई आशंका केनाय कोनो अनुचित नहि।
एहि सम्बन्ध में विशेष ध्यान देवाक आवश्यकता अछि जे पुनर्जागरण हो आ सभ मैथिल मिथिलाक्षर सँ कम सऽ कम परिचित अवश्य होई। कियाक तऽ आजुक स्थिति एहेन भय गेल जे अधिकांश मैतिल तऽ मिथिला कें अपन लिपि सेहो छैक अहू सं अपरिचित छथि एहेन स्थिति में मिथिलाक्षर केर संरक्षण कतेक कठिन अछि सहजतया बुझल जा सकैत अछि।
एहि सन्दर्भ में श्री गजेन्द्र ठाकुर केर प्रयास सराहनीय छन्हि जे Learn International Phonetica Alphabet through Mithilakshara. नामक ग्रन्थ लिखि एहि दिस लोक केर ध्यन आक्र्षित कराओलथि। यद्यपि ई ग्रन्थ सीमित जानकारी प्रस्तुत करैत अछि मुदा प्रारम्भिकदृष्ट्या उत्तम अछि। ई ग्रन्थ Online pdf फार्मेट में सेहो उपलब्ध अछि।
पुनश्च ई निवेदन जे एहि ग्रन्थक विस्तृत रूप में परिवर्द्धन हो आ व्यवहार में मिथिला क आखर समस्त मैथिल केर हृदय में पुनः विराजमान हो एकर समुचित प्रयास कयल जाय।

स्वातन्त्रोत्तरयुगीन संस्कृत साहित्यक संवर्द्धन मे मिथिलाक भूमिका।

स्वातन्त्रोत्तरयुगीन संस्कृत साहित्यक संवर्द्धन मे मिथिलाक भूमिका।

भक्तत्राण परायणा भवभयाभावं समातन्वती, या देवीह सुदर्शनं नृपमणिं संरक्ष्य युद्दे खरे।
या चास्मै समुदात् स्वराज्यमखिलं स्वीयं हृतं शत्रुभिः, पायात् सा भुवनेश्वरी भगवती मां सर्वदा शर्मदा।
भारतीय ज्ञान परंपरा विचारक, ग्रन्थक आओर चिन्तकक निरन्तर अविच्छिन्न प्रवाहमयी धारा अछि जे दर्शन, साहित्य, तर्क, विज्ञान, धर्मशास्त्र आओर अन्यान्य ज्ञान-विधा से निर्मित होइत रहल अछि। एहि ज्ञान परंपरा कऽ समुन्नयन मे संस्कृत साहित्य आओर मैथिली साहित्य कऽ योगदान नितान्त महनीय अछि।
एहि लेख मे संस्कृत साहित्यक संवर्द्धन मऽ मिथिलाक की भूमिका रहल अछि एकर दिग्दर्शन करबाक प्रयास कयल जा रहल अछि। तहू मे मूलतः स्वातंत्रोत्तर युगीन संस्कृत साहित्यक संवर्द्धन मऽ मिथिलाक की भूमिका रहल अछि एकर विश्लेषण कयल जा रहल अछि। वस्तुतः एकटा लेखक माध्यम सँ सम्पूर्ण तथ्यक प्राकाशन सर्वथा कठिन अछि, अस्तु प्रतिनिधि अंश द्वारा कथनक पुष्टि करवाक प्रयास रहत। संस्कृतक की स्थिति छल प्राचीन मिथिला म ई त्ऽ एकटा उद्धरण सँ स्पषट भय जाइत अछि-
जगद्ध्रुवं स्याजगध्रुवं वा, कीडांगना यत्र गिरोगिरन्ति।
द्वारस्थ नीडाग्ङ्गसन्निरुद्ध, यानीहि तं मण्डन मिश्र धाम॥
संस्कृत साहित्यक समुन्नयन मे प्राचीन काल सँ मिथिला कऽ सहस्रशः मनीषि समर्पित रहल छथि । एहि मे- व्याकरणक क्षेत्र मे वार्त्तिककार वरुरुचि, भाषाविद् आओर साक्षात शेषावतार भगवान पतंजलि, दर्शनक क्षेत्र मे गौतम, कपिल, वाचस्पति मिश्र, ईश्वरक अस्तित्त्वप्रतिष्ठापक रूप मे प्रथित उदयनाचार्य, नव्यन्यायक प्रतिष्ठापक गंगेश उपाध्याय, उद्योतकर, पक्षधर मिश्र, अद्वैत वेदान्ती मण्डन मिश्र, विदुषी गार्गी, मैत्रेयी, भारती, धर्मशास्त्रक क्षेत्र मे लक्ष्मीधर, श्रीकर, हलायुध, भवदेव, श्रीधर, अनिरुद्ध, हरिहर, चन्द्रशेखर प्रभृति विसेश रूप सँ प्रथित छथि। काव्यक क्षेत्र मे विद्यापति जयदेव, मुरारि, भानुदत्त, शकर महनीय छथि।
अन्य विद्वान में महावैयाकरण पं० दीनबन्धु झा, पं० श्यामसुन्दर झा, पं० देवानन्द् झा, पं० तुलानन्द झा, पं०बुद्धिनाथ झा, पं०राधाकान्त झा, पं०वामदेव झा, पं० कामेश्वर झा, पं० वी० एन० झा, पं० शशिनाथ झा प्रभृति केँ नाम लेल जा सकैत अछि।
स्वातन्त्रोत्तर युग मे अनेकशः कवि अपन कृतिक माध्यम स्ँ संस्कृत साहित्य सुषमाक संवर्द्धन कयलथि। कतिपय कवि आओर हुनक कृति द्रष्टव्य अछि-
महाकाव्य :-
• पं० भवानीदत्त शर्मा सुरथचरितम्
• पं० रामचन्द्रमिश्र वैदेहीचरितम्
• पं० पशुपति झा नेपालसाम्राज्योदयम्
• पं० मतिनाथ मिश्र भार्गवविक्रमम्
• पं० कृपाकान्त ठाकुर आंजनेयचरितम्
• पं० रामकुमार सर्मा भरतचरितम्
खण्डकाव्य :-
• पं० जीवनाथ झा महेन्द्रप्रतापोदयम्
• पं० श्यामसुन्दर झा राजलक्ष्मीचरितम्
• पं० विष्णुकान्त झा राजेन्द्रवंशप्रशस्ति
• पं० रामचन्द्र मिश्र याज्ञासेनी
• पं० काशीनाथ मिश्र स्मरदहनमंजरी
• पं० रामजी ठाकुर वैदेहीपदांकनम्
• पं० हरिकान्त झा जम्मूकाश्मीरसुषमारत्नम्
अन्य प्रमुख काव्य:-
• पं० कविशेखर बद्रीनाथ झा काव्यकल्लोलिनी
• पं० आनन्द झा आनन्दमधुमन्दाकिनी
दृश्यकाव्य:-
• पं० तेजनाथ झा अयाचीनाटक
• पं० अच्युतानन्द झा विज्ञानमहिमा
• डा० नोदनाथ मिश्र मधुमालती
उक्त विवरण एकटा झलकमात्र अछि वस्तुतः तऽ एहि तरहें असंख्य रचना भेल अछि। अही संग संग ई कहब जरूरी अछि जे बहुतो विद्वान एहनो छलाह जे संस्कृत सं मैथिली पद्यानुवाद कय संस्कृतक संग संग मैथिली साहित्य कें समृद्द करबाक प्रयास मे आजीवन लागल रहला। अहे तरहक एकटा उदाहरण प्रस्तुत अछि पं० तुलानन्द झा कृत दुर्गासप्तशती चतुर्थ अध्यायक १ टा पद्या।
इन्द्रादि देव सभ मिलि करैछ हर्षें, रोमांच सुन्दर शरीर नुतो स्ववाक्यें।
दुर्गा प्रणाम-रत मस्तक नींक भावें, देवी कऽ मारल महिषासुर नाश भेनें॥
देवी जनीक सुबलें सभ व्याप्त विश्वे, सम्पूर्ण देवबल संघक कैल देहे।
अम्बा थिकीह सब देव महर्षि पूज्ये, प्रेमे नमी, सुभद ओ हमरा सभैकेँ
एवं प्रकारेण कहल जा सकैत अछि जे मिथिला सर्वथा सारस्वत साधना मे लीन रहैत संस्कृतक साहित्य सम्वर्द्धन में सतत योगदान दैत रहल अछि।

आवश्यकता अछि सकारात्मक मौलिक चिन्तनक

आवश्यकता अछि सकारात्मक मौलिक चिन्तनक

मानवमात्रक विकास हेतु मौलिक चिन्तन अत्यावश्यक अछि। संगहिं विज्ञान आ प्रौद्योगिकीक निरन्तर विकासक मार्ग में मौलिक चिन्तनक उपेक्षा नहि कयल जासकैत अछि। कोनो राष्ट्र यदि विकसित राष्ट्र कऽ रूप में ख्यातिप्राप्त अछि तऽ एहि में मौलिक चिन्तक योगदान सहजतया इंगित कयल जा सकैत अछि।
एतय ’सकारात्मक’ पद जोडबाक आशय मात्र एतवा अछि जे मौलिक चिन्तन यदि ध्वंसात्मक हो तऽ ओ सर्वनाशक कारण सेहो भय सकैत अछि। आब प्रश्न ई अछि जे एहि लेख कऽ औचित्य की अछि? कियाक तऽ मनुक्ख जन्मजात विचारशील प्राणी होइत अछि। मौलिक चिन्तन ओकर स्वाभाविक गुण होइत छैक। मुदा… यदि वर्तमान परिप्रेक्ष्य कें ध्यान में राखल जाय तऽ व्यक्ति, चाहे ओ जे कोनो कारण हो, मौलिक चिन्तन सऽ परहेज राखय चाहैत अछि।
अपन गप्प कें हम आजुक शोधक सन्दर्भ कें विशेष रूप सऽ जोडय चाहैत छी कियाक तऽ भारतवर्षक विभिन्न उच्च अध्ययन संस्थान द्वारा करायल जा रहल विभिन्न विषय में शोध (जेकरा प्रचलित रूप मे M. Phil/ M. Tech, D. Phil Ph. D आदि कहैत छियैक), राष्ट्रक ज्ञानपरम्परा क संवर्धक आओर राष्ट्रक विकास में सहायक होइत अछि।
सामान्यतया आजुक स्थिति ई भय गेल अछि जे अधिकांश उच्च अध्ययन संस्थान द्वारा करायल जा रहल विभिन्न विषय में शोध, उपाधि प्राप्तिक हेतु मात्र भय जा रहल अछि। एहि विषय सऽ अपने लोकनि सेहो अंशतः वा पूर्णतः सहमत होयब। सामान्यतः देखल जाइत अछि जे विबिध ग्रन्थगत तथ्य आओर अवधारणा क प्रस्तुति कय शोधग्रन्थ तैयार कय उपाधि प्राप्त कय लेल जाइत अछि। ओकर गुणवत्ता पर ध्यान नहि देल जाइत अछि।
एतय हम एकटा महत्त्वपूर्ण संस्था मे जाहि विषय पर उपाधि देल गेल ओकर चर्चा करय चाहैत छी। विषय “Theory of false Cognition” (भ्रम सिद्धान्त) सँ संबन्धित छल। ओतय विभिन्न सिद्धान्त शोधकर्ता द्वारा प्रस्तुत कयल गेल। पूर्ववर्ती आचार्यक मत पर टिप्पणी हुनका आदर दैत नहिं कयल गेल। एतय हमर कथन जे- शोधकर्ता सँ अपेक्षित छल जे विभिन्न आचार्यक मत कें समीक्षा करितथि। जतय कतहु ओहि में समस्या छैक ओकर यथासंभव समाधान प्रस्तुत करितथि। अन्यथा तऽ ओ शोध पुनर्प्रस्तुतीकरणमात्र अछि जे जनमानस हेतु मात्र भारस्वरूप कहल जासकैत अछि।
एहि उदाहरणक माध्यम सँ हम मात्र एतेक कहय चाहैत छी जे केवल अन्धानुकरण कय अपन प्रतिभाक विकासक मार्ग अवरुद्ध नहिं करवाक चाही। एतय पूर्वाचार्यक प्रति अनादरक भाव नहि अभिप्रेत बुझी। प्रत्येक व्यक्ति के अपन मौलिक चिन्तन द्वारा ओ शोध हो अथवा व्यावहारिक जीवन, जनमानस कें नवीन दशा आओर दिशा देवा में सहयोग करैक चाही। अपन मिथिलाक संस्कृतिक प्रत्यभिज्ञा भेला सँ ई बात सहज रूप में स्पष्ट भय जाइत अछि जे ई माटि कखनहुं अन्धानुकरण के प्रश्रय नहिं देलकैक, अपन खण्डनमण्डानात्मक विधि द्वारा जनमानस के विकास में सहयोग दैत रहल अछि। एकरे परिणाम कहल जा सकैत अछि जे नव्यनाय क उत्पत्ति मिथिला में भय सकल जाहि कारण मिथिलाक संस्कृति आइयो समस्त विश्व में समादृत अछि। अस्तु आशा अछि जे एकर मर्यादा सतत राखल जायत।
बिपिन झा
http://sites.google.com/site/bipinsnjha/home

॥ कथं ’संस्कृतं’ संस्कृतम् ॥ (विशिष्टभाषाक रूप में संस्कृत:- एक विमर्श)

॥ कथं ’संस्कृतं’ संस्कृतम् ॥
(विशिष्टभाषाक रूप में संस्कृत:- एक विमर्श)

संसारक प्राचीनतम उल्लिखित भाषाक रूप में संस्कृत प्रथित अछि। संस्कृत शब्द दू शब्द “सम्” (अर्थात्, सम्पूर्ण) और “कृतम्” (अर्थात्, कयल गेल) (सम्+कृ+क्त) सऽ मिलकें बनल अछि| एहि शब्द क अर्थ होइत अछि- सम्पूर्ण, त्रुटिहीन| अन्यान्य भाषाक नामकरण क्षेत्रादिक नाम पर कयल गेल अछि मुदा संस्कृतक नामकरणक हेतु एकर संस्कारयुक्त होयब छैक। एतय संस्कारयुक्त होयबाक तात्पर्य एकर परिष्कृत व्याकरण, सरलता एवं वैज्ञानिकता छैक। संस्कृत कें विशिष्ट स्थान प्रदान करय बला किछु अन्यान्य कारक सेहो छैक जेकरा अधोलिखित बिन्दुक माध्यम सऽ निर्दिष्ट कयल जा सकैत अछि-
• भाषावैज्ञानिक अध्ययन मे एकर प्रभूत योगदान (सन्दर्भ हेतु ऋग्वेद १/१६४/४५, ४/५८/३, १०/७१/१-२-३, १०/११४/८, यजुर्वेद १९/७७, अथर्ववेद९/१०/२-२१ द्रष्टव्य)।
• प्रमुख प्राचीन ज्ञान-विज्ञान, कला, पुराण, काव्य, नाटक आदिपरक ग्रन्थक संस्कृत में निबद्धता।
• हिन्दू धर्मक लगभग सबटा धर्मग्रन्थ संस्कृते मे निबद्ध अछि।
• एकताकऽ शिक्षा देनाई।
• संस्कृत भाषा क व्याकरण अत्यन्त परिमार्जित एवं वैज्ञानिक अछि। संस्कृत हेतु प्रथित व्याकरण अछि पाणिनि अष्टाध्यायी जे एकरा कम्प्यूटर फ्रेण्डली भाषा होयबा मे योगदान देलकैक।
संस्कृत भाषा कऽ वैशिष्ट्य-
• अक्षर कऽ उच्चारण-
संस्कृत में प्रत्येकव्यंजनक उच्चारण हेतु स्वरक योग सर्वथा अपेक्षित रहैत छैक। संगहि उच्चारणक वैशिष्ट्य ई अछि जे कतहु व्यतिक्रम नहि होइत अछि। उदाहरण हेतु ’अ’ कऽ १८ भेद होइत अछि। व्यतिक्रम नहिं भेलाक कारणे उच्चारण वैषम्य नहिं दृष्टिगत होइत अछि। एहि भाषाक विपरीत आंग्ल आदि में ई व्यतिक्रम स्पष्टतः दष्टिगत होइत अछि। उदाहरणतः come (कम) और coma(कोमा) मे ‘co’ क दू टा भिन्न भिन्न उच्चारण भेटैत अछि|

• संस्कृत शब्दक निर्माण-
संस्कृत मे धातु-रूप, शब्द-रूप, प्रत्यय, उपसर्ग, और सन्धि आदिक सहायता सँऽ नवीन शब्द क निर्माण सरल अछि| संस्कृत मे शब्दो क निर्माण पूर्णतः वैज्ञानिक ढंग सँऽ कयल जाइत अछि|।
• व्याकरण-
एकर व्याकरण आओर वर्णमाला कऽ वैज्ञानिकता क कारण सर्वश्रेष्ठता स्वयंसिद्ध अछि। प्राचीन काल हो या आधुनिक काल, उत्तर भारत हो या दक्षिण भारत, संस्कृत का व्याकरण अपरिवर्तित रहल अछि|
• प्राचीनता
वैदिक ग्रन्थक प्राचीनता निर्विवाद रूप सँ स्वीकृत अछि। अस्तु संस्कृत हजारो वर्ष पहिने स विद्यमान अछि।
• संस्कारित भाषा-
संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं थीक, अपितु संस्कारित भाषा अछिएहि कारण एकर नाम संस्कृत अछि। संस्कृत कऽ संस्कारित करय बला छथि महर्षि पाणिनि; महर्षि कात्यायिनि और योग शास्त्र क प्रणेता महर्षि पतंजलि ।
• सरल भाषा-
सामान्य रूप सँऽ संस्कृत वाक्य में शब्द कें कोनो क्रम में रखल जा सकैत छैक। जाहि सँऽ अर्थक अनर्थ नहिं होइत छैक। ई एहि कारण संभव छैक जे एतय प्रत्येक पद वैज्ञानिक तरीका (समुचित विभक्ति आदिक संग) सँ राखल गेल होइत छैक।उदाहरणतः – अहं गृहं गच्छामि या गच्छामि गृहं अहम् दुनू ठीक छैक।
• त्रुटिहीन भाषा-
ई भाषा संगणक आओर कृत्रिम बुद्धि क लेल सबसँऽ उपयुक्त भाषा मानल जाइत अछि। संस्कृत व्याकरण तर्कशास्त्रीय दृष्टि सँऽ उपयुक्त अछि अस्तु मशीनक भाषाक लेल पूर्णतः उपयुक्त अछि| Forbes magazine, (July, 1987) केर अनुसार “Sanskrit is the most convenient language for computer software programming.” [ref - http://www.stephen-knapp.com/indian_contributions_to_american_progress.htm]
• मष्तिष्क विकास
आधुनिक शोध सँऽ ई स्पष्ट अछि जे संस्कृतक अध्ययन स मानसिक दृढता और स्मरणशक्तिक विकास होइत अछि। [ref-http://www.galendobbs.com/theck/sanskrit.html]
• एकताक निर्वाहक-
संस्कृते एहेन भाषा अछि जे भाषाविवाद कें प्रश्रय नहिं दैत अछि। ई एकता केर गीत सुनवैत अछि।
अस्तु उक्त विविध बिदुक माध्यम सँऽ एतेक निर्विवाद अछि जे संस्कृत विशिष्ट भाषाक रूप में विद्यमान अछि। एकटा प्रवाद सतत सुनवा में अबैत अछि जे संस्कृत आब मृतप्राय अछि; एहि सन्दर्भ में विभिन्न सन्दर्भक संग भ्रान्ति दूर करबाक प्रयास करब हम आगामी लेख में। ता धरि विभिन्न राजनेता द्वारा संस्कृत में शपथग्रहण करब, संस्कृत लेल जनमानस द्वारा समस्त वसुधाक अखण्ड मानैत कयल जारहल प्रयास आदि अपनें लोकनि कें उक्त प्रवादक जाल में फँसवा सऽ वारित करत संगहि http://sanskritam.ning.com/ ई अन्तर्जाल श्रोत संस्कृतक जीवन्तताक झांकी प्रस्तुत करत।
बिपिन झाhttp://sites.google.com/site/bipinsnjha/home

॥ आवश्यकता अछि मैथिली शब्दतन्त्र निर्माणक ॥


॥ आवश्यकता अछि मैथिली शब्दतन्त्र निर्माणक ॥
            शब्दतन्त्र जेकरा सामान्य रूप संऽ Word-Net रूप में कहल जाइत अछि, ई अखनि धरि मैथिली भाषा हेतु तैयार नहिं भय सकल अछि। एहि लेखक माध्यम सँऽ समस्त मैथिलीप्रियबन्धुगण कें एहि दिस आगू बढवाक हेतु उद्यत करय चाहैत छी।
            सबसँऽ पहिने ’शब्दतन्त्र’ एहि पद सँ की अभिप्राय ई स्पष्ट करब उचित बुझैत छी। शब्दतन्त्र एकटा   Lexical Database होइत अछि जे शब्द कें पर्यायवाची चयन करबा में अथवा शब्दक विवरण शीघ्रता सँऽ क्षण भरि में तकबा में उपयोगी होइत अछि। एकर उपयोग एतबा धरि सीमित नहिं अछि अपितु एकर उपयोग संगणकीय भाषाविज्ञान आ कृत्रिम प्रज्ञानं हेतु सेहो कयल जा सकैत अछि। शब्दतन्त्रक परिचय आओर विस्तृत विवरण हेतु विक्कीपीडिया द्रष्टव्य अछि[1]
            आब प्रश्न उठैत अछि जे कोन-कोन भाषा हेतु शब्दतन्त्र बनल अछि आओर मैथिली हेतु कियाक आवश्यक अछि। अंग्रेजी[2], संस्कृत[3], उडिया[4], हिन्दी[5], आओर मराठी[6] हेतु शब्दतन्त्र निर्माण हेतु प्रयास कयल गेल अछि| मैथिली हेतु शब्दतन्त्रनिर्माणक दिशा में आइ धरि प्रयास नहिं कयल गेल। यदि मैथिली शब्दतन्त्र साफ्टवेयर के रूप में उपलब्ध भय जायत तऽ संगणकीय दृष्टि सँ मैथिलीक महत्त्व अवश्य बढत संगहि उपयोगकर्ता  हेतु ई भाषा सहजतम भय जायत।
            कोनो भाषा तखने धरि जीवन्त रहैत अछि जाधरि ओ उपयोग में रहैत अछि। ई शब्दतन्त्र मैथिली कें उत्कर्ष पर पहुंचेबा में समर्थ सिद्ध होयत। आजुक संसार एतेक आगू बढैत जारहल अछि जतय भाषा बाधक नहिं रहत। एक भाषा सँऽ दोसर भाषा में अनुवाद यन्त्र द्वारा[7] संभव अछि। यदि मैथिली भाषा हेतु निरन्तर प्रयास नहिं कयल जायत तऽ एकर एहि भाग दौड में पाछू छुटबाक संभावना अधिक अछि। अस्तु शब्दतंत्र निर्माणक दिशा में प्रयास हो ई आवश्यकता अछि। एहि सन्दर्भ में ध्यान आकर्षित करय चाहब The Global WordNet Association[8] दिस जे संसारक समस्त भाषा हेतु शब्दतन्त्र सम्बन्ध में एक महत्त्वपूर्ण प्लेटफार्म दैत अछि। अस्तु,  एहि दिशा में कार्य हो एवं यथाशीघ्र मैथिली शब्दतन्त्र क निर्माण हो ई जरूरत अछि। यदि एहि क्षेत्र में कतहु कार्य हो तऽ विदेहक माध्यम सँ सभ के अवगत कराओल जायत ई आशा अछि।
                                                                        बिपिन झा, CISTS, HSS, IIT, Bombay
                                                                        http://sites.google.com/site/bipinsnjha/home

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

युवा हेतु प्रेमक "समुचित मार्ग"। (वेलेण्टाइन डे विशेष पर)

 
बिपिन झा
युवा हेतु प्रेमक "समुचित मार्ग"।
(
वेलेण्टाइन डे विशेष पर)
 
प्रेम दिवस एकदा मन्यते यत्र रक्तपातोऽल्पि कारयति,
वर्षस्य प्रतिदिवस घ्रृणादिवस सम कुर्वन्न शर्म लभते।
न कोऽपि कथयति तं किमपि, यः वितरति विषयुक्ता हाला,
किन्तु सर्वे निन्दन्ति यदा मधु वितरति मधुशाला॥


सामान्यतया ई देखल जाइत अछि जे प्रेम दिवस अर्थात वेलेण्टाइन डे दिन यदि कोई विशेष उत्साह रखैत अछि तऽ समाज नीक नहि बुझैत छैक। एतय प्रश्न उठैत अछि जे प्रेम केर इजहार करब उचित वा अनुचित? एहि सन्दर्भ में जहाँ तक हमर दृष्टि अछि - प्रेम जीवन केर महत्त्वपूर्ण शक्ति छियैक जे भावना पर आश्रित होइत छैक। आब एतय प्रश्न स्वाभाविक अछि जे प्रेमक अभिव्यक्ति केना हो? एतय सजतया अपन विचार के प्रस्तुत करवाक लेल हम गीता केर भक्ति कर्मकेर अवधारणा क माध्यम बना रहल छी। यदि निष्पक्ष भाव सँ देखल जाय तऽ प्रेम क्यल नहि जाइत छैक सहजतया भय जाइत छैक (we 'fall in love' not 'get it'). एहि स्थिति में समस्त प्रेमी के भक्तिमार्ग आ कर्ममार्ग में बिभक्त कय सकैत छी। भक्ति मार्ग में जतय व्यक्ति एकता दास जकाँ समर्पित भाव सँ काज करैत छैक ओतहि कर्म मार्ग में व्यक्ति स्वामी जकाँ आचरण करैत छैक। भक्ति मार्ग केर अपनबै बला प्रेमी विविध भावनानुकूल आचरण करैत छथि ओतहि कर्ममार्ग केर श्रेयस्कर बुझयबला मैत्री आ आनन्द केर अनुगमन करैत छथि। ई शब्दावली यदि आंग्ल पर्याय रूप में देखी तऽ विशेष स्पष्ट होयत।
उक्त दुनू मार्ग एकांी दृष्टिगत होइछ। यदि दुनू केर समन्वय  कय प्रेम केर गाडी आगू बढायल जाय तऽ ओ प्रेम निश्चित रूप सँ सफल होयत एहि में कतहु सन्देह नहि।

प्रेमक मह्त्त्व बुझैत सन्त वेलेण्टाइन अपन जीवन एहि कार्य हेतु युवा के प्रेरित करबा लेल अपन जीवन कें सर्वस्व न्यौछावर कय देलथि। राजा केर अवज्ञाक कारण हुनका मृत्युदण्ड भेटलन्हि।

एतय एकटा गप्प कहब अनिवार्य बुझैत छी जे वर्तमान समय में एहि पावन अवसर के अनुचित प्रयोग होइत अछि। अस्तु युवा वर्ग कें एहि दिस ध्यान देव अत्यावश्यक जे  प्रेम दिवस कें नैतिकता क संग प्राणी मात्र हेतु मनायल जाय। आओर बुजुर्ग सँ आग्रह जे एहि पावन दिवस कें संकुचित दृष्टि सँ नहि देखि एकरा उत्साह क संग मनेवा हेतु युवा वर्ग कें प्रेरित करथि।
(
लेख केर कोनोशब्द जनभावना के ठेस पहुँचवैत हो ओहि लेल सतत क्षमाप्रार्थी छी)

बिपिन झा, पी एच. डी स्कालर
आय. आय. टी. मुम्बई
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